Wednesday, November 18, 2020

 भाई-बहन के अापार स्नेह का पर्व भ्रातृद्वितीया के गीतों से सराबोर रहा मिथिलांचल क्षेत्र 

  • बहनों ने उपवास रहकर व्रत की और भाईयों को बजरी खिलाकर की लंबी उम्र की कामना 

सहरसा/संजय सोनी 

भ्रातृद्वितीया पर्व की महत्ता बढती ही जा रही है। कोरोना संक्रमणकाल में बहनों ने अपनी जान जोखिम में डालकर सोशल डिस्टेंस को नजरअंदाज करते हुए भाइयों की लंबी उम्र की कामना वाली लोक पर्व भ्रातृ द्वितीया मनायी। अब शहरी क्षेत्र के घर-आंगन मेंं भी लड़किया एवं महिलाएं इस व्रत को खुब कर रही है। कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की द्वतिया को भाई एवं बहन के अापार स्नेह का महान पर्व भ्रातृद्वितीया(भैया दूज) के गीतों से मिथिलांचल क्षेत्र सराबोर रहा।

भाईयों को बजरी खिलाकर की लंबी उम्र की कामना- 

सोमवार 16 नवंबर को बहनों ने उपवास रहकर व्रत की और अपने-अपने भाईयों को बजरी खिलाकर लंबी उम्र कामना की। हिन्दु परिवारों में कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को

बहना उपवास रहकर अहले सुबह से ही भईया दूज की तैयारी में जुट गयी। भैया दूज मनाने के लिए अपने-अपने मुहल्ले के जानकार वृद्ध महिला के घर गोबर से लिप कर पूजन स्थल बनायी।  पूजन स्थल के चारों तरफ महिला एवं लड़कियों ने यमुना एवं यमराज का प्रतीक रूप बनाकर गीत गाकर पूजा-अर्चना की। इसके बाद अपने-अपने भाईयों को बजरी खिलाकर दीर्घायु जीवन की कामना की। अर्पण से सजा बीच आंगन में आसन पर भाई को बैठाकर भाइयों को माथे पर तिलक लगाकर आरती की और कलाई में रक्षासूत्र कलेवा बांधकर दीर्घायु जीवन की कामना की। इसके बाद केला में बजरी डाल कर प्रसाद ग्रहण करवायी।

वृद्ध महिलाओं ने सुनायी भैया दूज की कथा-

वृद्ध महिलाओं ने भैया दूज की कथा सुनाई। कथा के दौरान पौराणिक मान्यताओं से अवगत कराती हुए  मैया यमुना नदी ने अपने भाई यमराज को इसी दिन मांगलिक द्रव्यों का टीका लगाकर भोजन ग्रहण करवायी थी। इसके बाद भाई यमराज ने अपनी बहन यमुना से वरदान मांगने की इच्छा व्यक्त की तो वरदान में बहना ने कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को जो भी नदी स्नान करेगा उसे अंत काल में यम यातना नहीं भोगना पड़ेगा की मांगी। भाई यमराज ने इसी दिन से अपनी प्यारी बहन यमुना को वरदान देकर परलोक सिधार गये। उस दिन से ही इस पर्व को बहन एवं भाई अंगीकार कर कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को भ्रातृ द्वितीया मनाने लगी।


Sunday, November 15, 2020

चैनपुर पंचायत में वर्ष 1915 में स्थापित पाठशाला 
चैनपुर पंचायत में वर्ष 1915 में स्थापित इस पाठशाला में बच्चों को वैदिक शिक्षा की प्रमुख शिक्षण संस्थान सरकारी सुविधा से वंचित, बच्चों को यहां यजुर्वेद का प्रमुख अंग रूद्राष्टाध्यायी की दी जाती है शिक्षा 



बाल्यकाल से ही यजुर्वेद की शिक्षा प्रदान करने वाली कोसी क्षेत्र की एक मात्र प्राचीन संस्कृत शिक्षा पद्धति पर आधारित टोल संस्कृत पाठशाला आज भी सरकारी सुविधा से वंचित है। जिले के कहरा प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत चैनपुर पंचायत अवस्थित वर्ष 1915 में स्थापित इस पाठशाला में बच्चों को यजुर्वेद का प्रमुख अंग रूद्राष्टाध्यायी का न केवल पाठ कराया जाता है बल्कि दो साल के अंदर बच्चों को आवासीय शिक्षण व प्रशिक्षण देकर कंठस्थ करा दिया जाता है। इस शिक्षा को ग्रहण करने वाले छात्र वैदिक रीति-रिवाज से पूजा-पाठ को दक्षता प्राप्त कर लेते हैं। लेकिन आधुनिक शिक्षा पद्धति के समक्ष इस प्राचीन संस्कृत शिक्षा पद्धति पर आधारित विद्यालय के विकास की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। 
जिले के कहरा प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत चैनपुर पंचायत के पूबारी टोल के वार्ड सं. 4 अवस्थित श्री भागीरथ प्राथमिक सह माध्यमिक संस्कृत पाठशाला प्राचीनकाल में टोल संस्कृत पाठशाला के नाम से प्रचलित थी। इसके बाद वर्ष 1941 में जब यहां संस्कृत के साथ अन्य विषयों की शिक्षा दी जाने लगी तो भागीरथ संस्कृत प्राथमिक विद्यालय और फिर 1972 में पूरी तरह से आधुनिक शिक्षा पद्धति को अपना लिया ता यह श्री भागीरथ प्राथमिक सह माध्यमिक संस्कृत पाठशाला के रूप में मान्यता प्राप्त कर ली। इस विद्यालय में छोटे-छोटे बच्चों को आवासीय शिक्षण के तहत शास्त्रीय व उपशास्त्रीय के आलावा लघु सिद्धांत कौमुदी, रूद्राष्टाध्यायी, मूल रामायाणम् एवं  रघुवंश रूचि सर्वग जैसे महत्वपूर्ण विषयों की पढाई होती है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण व जीवनोपयोगी विषय रूद्राष्टाध्यायी है। रूद्राष्टाध्यायी में अभिषेक विधि एवं पूजा विधान की विस्तार से वर्णन है। इस विद्यालय के प्रधानाध्यापक उमेश कुमार झा ने कहा कि रुद्राष्टाध्यायी यजुर्वेद का प्रमुख अंग है और वेदों को ही सर्वोत्तम ग्रंथ बताया गया है। यही वजह है कि भारतीय संस्कृति में वेदों का इतना महत्व है व इनके ही श्लोकों, सूक्तों से पूजा, यज्ञ, अभिषेक आदि किया जाता है। उन्होंने कहा कि सरकारी सुविधा नहीं मिलने की वजह से विद्यालय विकास बाधित है। 

इस विद्यालय के विभिन्न कक्षाओं में कुल 150 बच्चे जहां नामांकित हैं वहीं 14 बच्चे आवासीय शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। आवासीय शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र ही मूल रूप से रूद्राष्टाध्यायी का अध्ययन करते हैं और जीवनोपयोगी बना रहे हैं। इस विद्यालय को भवन का घोर अभाव है। इस वजह से नामांकित बच्चों की दैनिक उपस्थिति भी कमजोर पड़ जाती है। इस विद्यालय में प्रधानाध्यापक उमेश कुमार झा सहित कुल 9 शिक्षक पदस्थापित हैं और इनमें कोई व्याकरणाचार्य, साहित्याचार्य तो कोई वेदाचार्य हैं। पढाई की गुणवत्ता वेदों की पढाई कर रहे बच्चों की प्रतिभा से ही प्रलक्षित हो जाती है।

चैनपुर मां काली के पिंडी दर्शन व पूजा कर सालों भर श्रद्धालु आध्यात्मिक उर्जा से होते हैं अभिभूत

 






-आदि काली मंदिर के पिंडी में भी बसती है कोलकाता के मां दक्षिणेश्वर काली की आत्मा


सहरसा, संजय सोनी

पश्चिम बंगाल कोलकाता के मां दक्षिणेश्वर काली की आत्मा सहरसा जिला के कहरा प्रखंड अंतर्गत चैनपुर गांव स्थित आदि काली मंदिर के पिंडी में भी बसती है। चैनपुर गांव में काली पूजा की करीब 150 साल पुराना इतिहास एवं परंपरा है। चैनपुर मां काली मंदिर में श्रद्धालुओं को कोलकाता दक्षिणेश्वर मां काली की आभा महसूस होती है। यहां सालों भर भक्त एवं श्रद्धालुगण मां काली की पिंडी दर्शन व पूजा कर आध्यात्मिक उर्जा से अभिभूत होते रहते हैं। मां काली के जन्म के साथ ही भक्ति भाव से पूजा-अर्चना में श्रद्धालु जुट जाते हैं। मां काली पूजा एवं छागर बलि प्रदान की भी अद्भूत परंपरा है और प्रत्येक साल परंपरा के अनुरूप वैदिक रीति-रिवाज से काली पूजा-अराधना की जाती है। जन्म के दूसरे दिन मेला और तीसरे दिन ग्राम भ्रमण कर श्रद्धाभाव से मूर्ति विसर्जन किया जाता है।    

श्रीश्री 108 श्रीनीलकंठ काली पूजा समिति चैनपुर-

इस गांव में एक अन्य स्थान पर श्रीश्री 108 श्री नीलकंठ काली पूजा समिति चैनपुर द्वारा वर्ष 1972 में मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की गयी। यहां 49 वां स्थापना दिवस मनाया जा रहा है। यहां भी मूर्तिकार संजय खां पिछले 30 वर्षों से मूर्ति बनाते आ रहे हैं।

 

चैनपुर में काली पूजा की कैसे बनी परंपरा-

वर्ष 1870 में चैनपुर गांव निवासी साधक सिंहेश्वर दत्त ठाकुर द्वारा पछवारी टोला में कोलकाता के मां दक्षिणेश्वर काली मंदिर की पिंडी की मिट्‌टी से प्राण-प्रतिष्ठा की गयी थी। महामहोपाध्याय पं. अमृतनाथ झा द्वारा पूजा पद्धति बनाकर विधिवत पूजा-अराधना प्रारंभ किया गया। ग्रामीण कहते हैं कि दक्षिणेश्वर काली कोलकाता में भी 1847 में मंदिर निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ था।  

मूर्ति निर्माण की भी है पुश्तैनी परंपरा-                       

चैनपुर आदि काली (बुढिया काली) मंदिर के प्रथम मूर्तिकार चैनपुर के भायलाल झा हुए और इसके बाद से ही मधुबनी जिला के मधेपुर गांव निवासी बतहु पंडित ने बनाना शुरू किया। उसके बाद उनके वंशजों में पुत्र शिवजी पंडित, उसके बाद फिर पुत्र रामप्रसाद पंडित द्वारा आकर्षक एवं कलात्मक मूर्ति बनायी जाती रही है। इस साल मूर्तिकार रामप्रसाद पंडित मुर्ति बना रहे हैं।

सौहार्दपूर्ण वातावरण में पूजा एवं मेला आयेजन की जिम्मेवारी-

वर्ष 2020 में 150 वां पूजा एवं मेला का आयोजन किया जा रहा है। वर्ष 2020 में श्रीआदि काली पूजा समिति के अध्यक्ष सोनू कुमार ठाकुर, उपाध्यक्ष राजु ठाकुर, सचिव सुंदरकांत ठाकुर, उप सचिव रतीश कुमार झा एवं कोषाध्यक्ष दिनेश कुमार झा काे ग्रामीणों ने सौहार्दपूर्ण वातावरण में पूजा एवं मेला आयेजन की जिम्मेवारी सौंपी गयी है।

Tuesday, October 29, 2019

मखाना एवं धान की खेती से वंचित जमीन में व्यापक पैमाने पर किया जा सकता है सिंघारा की खेती

कोसी में सिंघारा उत्पादन की आपार संभावना के बाद भी कृषि विभाग के महत्वांकाक्षी योजना की सूची से वंचित 

  • कम लागत में सिंघारा की खेती कर किसान हो सकते हैं आर्थिक रूप से समृद्ध 
  • जलीय फल सिंघारा में भैंस की दूध से 22 % अधिक है मिनिरल्स  
  • चपरांव गांव में सिंघारा की खेती करते किसान  
  • चपरांव में उप्तादित सिंघारा की बिक्री करती महिला  
पानी फल सिंघारा 




सहरसा, संजय सोनी 


कोसी क्षेत्र के विभिन्न क्षेत्रों में जलीय फल सिंघारा उत्पादन की आपार संभावनाएं रहने के बाद भी कृषि विभागअपनी महत्वाकांक्षी योजना में सिंघारा उत्पादन को शामिल नहीं कर रही है। जबकि प्रत्येक साला हजारों हेक्टेयर जमीन पानी के अभाव में मखाना एवं धान की खेती वाली जमीन वंचित रह जाती है। वैसे खेतों में कृषि विभाग एवं किसान आसानी पूर्वक सिंघारा की खेती की योजना तैयार कर बेकार पड़ी जमीन से सिंघारा के रूप में सोना उपजा सकती है। सिंघारा उत्पादन के लिए कृषि वैज्ञानिक एवं उद्यान पदाधिकारी भी कोसी क्षेत्र के ईलाके को उत्तम मानते हैं। लेकिन कोसी के ईलाकों में सिंघारा की खेती औने-पौने तरीके से की जा है। सिमरीबख्तियारपुर प्रखंड के विभिन्न क्षेत्रों में होती है सिंघारा की खेती-
सिमरी बख्तियारपुर प्रखंड के चपरांव सहित आसपास के क्षेत्र में करीब 50 एकड़ जलीय खेत में सिंघारा की खेती सदियों से की जाती रही है। चपरांव के किसान मो. गफुर, मो. अनू, मो. आसिन आदि करते हैं। अंतिम बैशाख एवं ज्येष्ठ से सिंधारा की खेती शुरू कर देते हैं और कार्तिक माह से फसल तोड़ना शुरू हो जाता है।

कितनी जमीन में होती है कितनी उपज-  
सब कुछ ठीक रहने पर एक कठ्‌ठा जमीन में 40 किलो सिंघारा का उत्पादन होता है। लेकिन डूबे परिस्थिति में भी एक कठ्‌ठा में 20 से 30 किलो फसल होना ही होना है। बीज की तैयारी के लिए फसल बचाकर किसान रखते हैं और उसका बीचरा यानि गुंज तैयार कर जलीय खेत में डाल देते हैं। गुंज जैसे जैसे बढता है उसी को तोड़कर पुन: खेत में डालने से फसल का विस्तार हाते जाता है। एक बीघा में 5 किलो बीज लगता है। मजदूर भी 500 रूपए रोज के हिसाब से मजदूरी लिया करता है। मजदूर से सिर्फ दवा की छिड़काव एवं सिंघारा तोड़ने के लिए ही की किया जाता है। सिंघारा का थोक रेट 2000 से 3000 रूपए क्विंटल है और खुदरा मूल्य 40 रूपए प्रति किलो की दर से बिक्री होती है।
गरीब किसान बटाई पर करते हैं सिंघारा की खेती-
किसानों को जल-जमाव वाली जमीन 25 हजार रूपए बीघा की दर से खेती के लिए बटाई पर उपलब्ध हो जाती है। किसानों को सिंघारा पौधा (गुंज) 10 रूपए में 3 मिलता है। वह भी सिंघारा उत्पादन करने वाले किसान ही बिक्री करते हैं।             

सिंघारा में भैंस की दूध से  22 % अधिक मिनिरल्स- 
भैंस की दूध से 22 % अधिक मिनिरल्स वाला जलीय फल सिंघारा उत्पादन की कोसी क्षेत्र में आपार संभावनाएं रहने के बाद भी कृषि विभाग अपनी महत्वाकांक्षी योजना में शामिल नहीं कर रही है। जबकि इस जलीय फल सिंघारा में प्रोटीन, कार्बोहाईड्रेड की मात्रा अधिक होने का दावा आयुर्वेद में की गयी है। सिंघारा में  कार्बोहाईड्रेड की मात्रा अधिक होती है और 100 ग्राम खाने के साथ ही शरीर को 115 कैलोरी मिलती है। 
मखाना एवं धान की खेती से वंचित जमीन में आसानी से होगी खेती-  
 अप्रैल एवं मई महीने में बहुत-सी जमीन पानी के अभाव में मखाना एवं धान की खेती से वंचित रह जाती है। वैसे जमीन में जुलाई से नवंबर तक पानी भरा रहता है। जिसमें व्यापक पैमाने पर सिंघारा की खेती कर किसान आर्थिक रूप से समृद्ध हो सकते हैं और पानी फल सिंघारा की डिमांड भी कम नहीं है। साउथ बिहार में नेचूरल फार्मिंग खुब होती है। नेचूरल कंडीशन में सिंघारा की खेती आसानी से होगी। इसमें बहुत उर्वरक की जरूरत नहीं पड़ती है।
-बिमलेश पाण्डेय, वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केन्द्र, अगवानपुर, सहरसा। 
जलीय कृषि की आपार संभावनाए हैं- 
जलीय कृषि की अापार संभावनाएं है। जल-जमाव वाले जमीन में कम लागत में सिंघारा की अच्छी खेती किया जा सकता है। सिंघारा को भी योजना में शामिल किया जाना चाहिए।
-संतोष कुमार सुमन, जिला उद्यान पदाधिकारी, सहरसा 
  

Tuesday, October 22, 2019

शौक के पिंजड़े में कैद हो रहा तोता, आखिर कैसे होगा तोता हीरामन मुक्त

शौक के पिंजड़े में कैद हो रहा तोता, आखिर कैसे होगा तोता हीरामन मुक्त

-बाग-बगीचा एवं जंगलों से बहेलिया शिकार कर पहुंचाते हैं शौकियों के पिंजड़े तक 
-अक्सर धान के सीजन में बहेलिया प्रजनन करने वाले वयस्क तोता को -जाल में फांस कर शहर के बाजारों में घूमघूमकर खोमचा में करते बिक्री -रेड स्पोटेड तोता प्रतिबंधित ट्रेड के साथ-साथ जाल में फंसाना कानून अपराध 
-शिडयूल फोर में 7 साल की सजा एवं 10 हजार रूपए जुमाना का है प्रावधान


संजय सोनी/सहरसा 

पिंजड़े में ताेता पालने वालों की तायदाद दिन-प्रतिदिन बढते ही जा रही है और खुले आसमान और बाग-बगीचे में विचरण करने वाला तोता को पिंजड़े में कैद कर दिया जाता है। इस कारण तोता पक्षी की भी आबादी धीरे-धीरे कम होते जा रही है। जबकि तोता का प्रजननकाल माह फरवरी से अप्रैल के बीच होता है। प्रजनन के बाद से ही बहेलिया बाग-बगीचा एवं जंगलों में शिकार कर शौकियों के पिंजड़े तक पहुंचा देते हैं। तोता पक्षी को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 में शामिल नहीं किए जाने को लेकर इसके अच्छे प्रजातियों की व्यापक पैमाने पर तस्करी का भी धंधा जोरों पर चलता है। 
सड़क किनारे एवं खोमचा में खुलेआम बिकता है तोता- 
अक्सर धान के सीजन में बहेलिया प्रजनन करने वाले वयस्क तोता को जाल में फांस कर शहर के बाजारों में घूमघूमकर खोमचा में तोता बिक्री करने लगे हैं। 
वैसे सड़क किनारे से लेकर खोमचा तक तोता की बिक्री अमूमन सालों भर की जाती है। तोता बिक्री करने वाले को क्या पता की अब यह तोता पक्षी भी कुछ दिनों बाद अनजान हो जाएगी। तोता के साथ भी अन्याय होने लगी है। पहला घरेलू एवं पालतू पक्षी होने की वजह से तोता भी विलुप्ति के कगार पर जल्द हीं पहुंचने वाली है। इसका मुख्य कारण यह है की पर्यावरणविदों के नजरो में इसकी सुरक्षा की कोई चिंता नहीं रह गयी है। कोसी क्षेत्र के इलाकों में व्यापक पैमाने पर धान की खेती होती है। इस वजह से इन इलाकों में तोते की खासकर छोटे प्रजातियां खूब पायी जाती है। 
कोसी एवं नेपाल के तराई क्षेत्रों में तोता की प्रजाति- 
कोसी एवं नेपाल के तराई क्षेत्रों में मदन बेला, काग बेला,गरार, टिया, काश्मिरी, हीरामन छोटकी, हीरामन पहाड़ी, सुद्दी एवं करणा आदि अधिक पायी जाती है। इन प्रजातियों में सबसे लोकप्रिय हीरामन पहाड़ी है। इस कारण बहेलिया आसानी पूर्वक इसका शिकार कर बाज़ारों में खुलेआम बिक्री करते हैं। न कोई प्रतिबंध और न कोई कानूनी खतरा। लिहाजा धड़ल्ले से तोते की शिकार एवं बिक्री हो रही है। बेचने वालों को क्या मतलब खरीददार पाल सकेगा या नहीं। इस दिशा में वन्य एवं पक्षी प्रेमियों को ख्याल रखने की सख्त जरुरत है, अन्यथा अन्य पक्षियों की तरह तोता भी विलुप्त पक्षी की श्रेणी में आ जाएगी और हमारा समाज चर्चित गीत इक डाल पे तोता बोले और इक डाल पे मैना बोलो हैना गाते ही रह जाएंगे। 
तोते का ट्रेड एवं जाल में फंसाना प्रतिबंधित- 
देश में 5 प्रकार का तोता पाया जाता है। जिसमें कोसी के ईलाके में सर्वाधिक रूप से रेड स्पोटेड तोता पाया जाता है। इन तोता का प्रतिबंधित ट्रेड के साथ-साथ जाल में फंसाना कानून अपराध है। शिडयूल फोर 7 साल की सजा एवं 10 हजार रूपए जुमाना का प्रावधान है। वन विभाग इसके लिए टीम गठित कर तोता का ट्रेड करने और जाल में फंसाने वालों के विरूद्ध सख्त कार्रवाई करेगी। 
-शशिभूषण झा, डीएफओ, सहरसा।

Saturday, March 30, 2019

अहले सुबह से मारवाड़ी समाज के घर एवं आंगन में गुंज रही ""गणगौर'' के गीत

चैत सुदी तीज को सूर्यास्त से पहले पांचों मूर्तियों को तालाब में किया जाएगा विसर्जन


नव कन्याओं के पति हंसी-खुशी नवेली दुल्हन को ससुराल ले जाएंगे विदाई 
"गोर ए गणगोर माता, खोल किवाड़ी। बाहेर उठी पुजावो सईंया, क्या फल मांगा''
सहरसा
मारवाड़ी नव कन्याओं का लोकपर्व गणगौर के गीतों से घर एवं पड़ोस का आंगन कई दिनों से सराबोर है। शहर के विभिन्न मुहल्लों में निर्वासित मारवाड़ी समाज के घर एवं आंगन में अहले सुबह से ही  गणगौर ""हरिये गोबर गीली दाबो, मोत्यां चोक पुरावो। मात्यां का दोय आखा ल्यावो निरणी गोर पुजावो।। गोर ए गणगोर माता, खोल किवाड़ी। बाहेर उठी पुजावो सईंया, क्या फल मांगा।'' गीत के बोल से गुंजायमान रहती है। गणगौर महापर्व में कुंवारी कन्यां अच्छे वर एवं नवकन्याएं ईशर, गोरा, मालन, रोवा एवं कानीराम की अराधना कर पति के दीर्घायू की कामना करती है। अंतिम दिन चैत सुदी तीज को सूर्यास्त से पहले नव कन्याएं, घर की महिलाएं, बच्चियां एवं बच्चे तालाब में पांचों मूर्तियों को विसर्जन करती है। इसके साथ ही अंतिम दिन नव कन्याओं के पति अपने ससुराल से हंसी-खुशी नवेली वधु को विदाई कर ले जाते हैं। 

कब से शुरू हुई गणगौर पूजन-
होलिका में जले बरकुला की राख एवं गाय की गोबर से 8 पिंडीय बनाकर कुंवारी व नवकन्यांए पहली चैत बदी  के दिन से गणगौर की पूजा-अर्चना शुरू करती है। इतना ही नहीं लड़कियां कुम्हार के घर जाकर मिट्‌टी लाती है और उससे भगवान शिव की प्रतिरूप ईशर, मां पार्वती के रूप गोरा, फुलवती के रूप में मालन, ईशर के बहन के रूप रोवा एवं भाई के रूप में कानीराम की मूर्ति बनाकर पूजती हैं।
गणगौर में भाई का महत्व-
गणगौर पूजा में भाई का रक्षा बंधन की तरह ही बड़ा महत्व दिया गया है। बहना भाई को भी तिलक लगाती है और भाई भी सामर्थ्य के अनुरूप बहनों को दान करती है। जिसे गौर बिन्घौरा कहा जाता है। इस परंपरा का निर्वहन मूर्ति बनाने से विसर्जन के बीच की जाती है। इस बीच गुरूवार अष्टमी को शीतला मैया की भी पूजा-अर्चना की गयी। शीतला पूजन में मारवाड़ी समाज के महिला व पुरूष सहित परिवार के सभी सदस्य मां शीतला को जल चढाकर ठंडा खाना खाए और माता को बाजरे की रोटी, राबड़ी, गुलगुल्ला आदि मिष्ठान चढाकर बसिया पर्व के रोज से ही गणगौर की मूर्ति बनाने में भी जुट गयी। 
गणगौर को पिलाती है 16 कुंआ का जल-
मूर्ति बनने के बाद लड़कियां दोपहर में गणगौर को पानी पिलाती है और गणगौर गीत भी गाती है। यह पूजा 17 से 18 दिनों की होती है। अंतिम दिन सुहागिन महिलाएं भी गणगौर को पूजती हैं। नवकन्याएं दोपहर में 16 कुंआ से जल लाकर गणगौर को पिलाती हैं। पूजा-अर्चना में सुनिधी यादुका टेकरीवाल,श्रुति यादुका टेकरीवाल, नेहा अग्रवाल, कोमल केडिया अग्रवाल, मेघा अग्रवाल गुप्ता, काजल अग्रवाल, पलक सुलतानियां, सोनी, दीपिका दहलान, प्रिया दहलान एवं सानू जगनानी इस वर्ष प्रमुख रूप से गणगौर पूज रही हैं।
गणगौर का विसर्जन समय-
तृतीया तिथि 7 अप्रैल को 4 बजे संध्या से शुरू होकर 8 अप्रैल को 4 बजकर 15 मिनट संध्या में नव कन्याओं का महापर्व गणगौर व्रत खत्म होगी। 

      






Sunday, March 17, 2019

बरियाही बाजार में होली मिलन समारोह आयोजित

बरियाही बाजार में होली मिलन समारोह आयोजित


संजय सिंह/सहरसा

जिला के कहरा प्रखंड अंतर्गत बारियाही बाजार स्थित दुर्गा मंदिर परिसर में वैश्य समाज बारियाही द्वारा होली मिलन अध्यक्ष राजू केशरी बबूल की अध्यक्षता एवं राजेश गुप्ता के संचालन में किया गया। आगत अतिथियों का स्वागत सचिव मनोज साह एवं धन्यवाद ज्ञापन उपाध्यक्ष मनोज सोनी ने किया।
वैश्य समाज बारियाही के होली मिलन समारोह का विधिवत शुभारंभ वैश्य समाज के जिलाध्यक्ष मोहन प्रसाद साह ,कार्यकारी अध्यक्ष देवेन्द्र कुमार देव , जिला प्रवक्ता राजीव रंजन साह , विजय गुप्ता , बजरंग गुप्ता , सत्यनारयाण साह , रंजीत बबलू, अमोद साह, शशि सोनी ,नवीन ठाकुर एवं नीरज राम ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया। इस होली मिलन समारोह को संबोधित करते हुए वैश्य समाज सहरसा के जिलाध्यक्ष मोहन प्रसाद साह ने कहा होली का त्यौहार समाजिक सौहार्द का त्यौहार है। वैश्य समाज ने आज अपने इस होली मिलन समारोह में समाज के हर वर्ग के लोगों के साथ मिलकर समाज मे समरसता लाने का मिसाल कायम किया है ।

रंग और गुलला का यह त्यौहार आप सभी लिए खुशियों का त्यौहार बने यही हम और हमारी संगठन की कामना है। समारोह में पंकज गुप्ता , अमर रंजन अधिवक्ता , शिशूपाल गुप्ता , प्रदीप गुप्ता, श्याम बिहारी, पप्पू गुप्ता, राजू गुप्ता ,सुनील भगत ,गौरव केशरी ,बबूल पौदार के जिला पार्षद धीरेंद्र यादव आदि ने होली मिलन समारोह में प्रमुख रूप से मौजूद थे।